महाकवि गोस्वामी तुलसीदास की जयंती के उपलक्ष्य में लोकबात यू-ट्यूब चैनल पर लाइव बात करते हुए प्रख्यात आलोचक और मुंबई विश्व विद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ.करुणाशंकर उपाध्याय ने कहा कि जब अयोध्या में विश्व स्तरीय राम मंदिर बनने जा रहा है तब यह भी जरूरी हो जाता है कि हम राम नाम को वैश्विक व्याप्ति प्रदान करने वाले और मध्य काल के भयावह दौर में भारतीय समाज को एकजुट रखने वाले विश्व के सबसे लोकप्रिय महाकवि गोस्वामी तुलसीदास की याद में एक विश्वस्तरीय तुलसी शोध पीठ की स्थापना करें जिसमें संपूर्ण विश्व में लिखी गई रामकथा शोधार्थियो के लिए उपलब्ध हो। इससे रामकथा के इतिहास और उसके वैश्विक स्वरूप को एक स्थान पर पाया जा सकेगा। डॉ.उपाध्याय ने आगे कहा कि गोस्वामी तुलसीदास हिंदी के सबसे दुर्निवार कवि हैं।वे भारतीय कविता की अस्मिता के प्रतीक हैं। लोकभाषा में रचित कविता भी किस तरह से अपने सार्वभौम-शास्वत संदेश और क्लासिकी शिल्प के कारण विश्वव्यापी लोकप्रियता प्राप्त कर सकती है यह हम तुलसी से सीख सकते हैं। उनसे सहमत- असहमत हुआ जा सकता है, लेकिन उनसे बचना असंभव है। उनकी कोई-न-कोई काव्य-पंक्ति जीवन के किसी-न-किसी संदर्भ में स्वतः आ जाती है।
रामचरितमानस की रचना द्वारा उन्होंने भारतीय संस्कृति और समाज को एकजुटता तथा मजबूती प्रदान की ।यह मानव मूल्यों की दृष्टि से समूचे विश्व का श्रेष्ठतम महाकाव्य है। यह नवीनता, मौलिकता और गहनता की दृष्टि से अप्रतिम है। इसमें व्यापकता और गहराई, यथार्थ एवं आदर्श तथा सूक्ष्मता एवं विराटता का अद्भुत संश्लेषण हुआ है। यह एक राष्ट्रीय महाकाव्य है जो भगवती भागीरथी के समान सबका हित साधने के लिए रचा गया है। इसलिए रामचरितमानस को लोकहितकारी महाकाव्य भी कहा जाता है।यह मानव जीवन के बृहत्तर मूल्यबोध का कभी न खत्म होने वाला आविष्कार है जिसमें सरल और आदर्श जीवन की प्रतिष्ठा की गई है।
तुलसी की रचनाएँ गुण और परिमाण दोनों ही दृष्टियों से अत्यंत उत्कृष्ट, विपुल एवं कालजयी हैं ।कदाचित वे विश्व के ऐसे महाकवि हैं जिसने लोक जीवन को सर्वाधिक प्रभावित किया है। उन्होंने मानव की सार्वभौम और शाश्वत अंतर्वृत्तियों का चित्रण जिस काव्यात्मक सौष्ठव के साथ किया वह सहृदय पाठक के लिए रमणीय वस्तु है।एक कठिन समय में देश, समाज और मानव- जाति को जिस गरिमा तथा संजीदगी से उन्नयन का मार्ग बतलाया वह एकांत विरल है। तुलसी ने भाव, विचार, चिंतन, दर्शन, रूप, शिल्प और भाषिक अनुप्रयोग आदि सभी दृष्टियों से हिंदी काव्य को उस स्थान पर पहुँचा दिया जिसके आगे राह नहीं। इनकी कविता की तरह इनका काव्य-चिंतन भी भारतीय साहित्य की अनमोल धरोहर है। कार्यक्रम के आरंभ में लोकबात के प्रबंध निदेशक डाॅ.आलोक पांडेय ने उपस्थित अतिथियों और महानुभावों का स्वागत किया। उन्होंने तुलसी जयंती के महत्व का भी प्रतिपादन किया और लोकबात चैनल के साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों में सहभागिता का उल्लेख किया। श्रद्धा वर्मा ने कार्यक्रम का सुंदर संचालन किया। अंत में डॉ. आलोक रंजन पांडेय ने आभार ज्ञापन किया।
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