ब्लॉक, डिप्रेशन एंड सुसाइड – अरविन्द विश्वकर्मा

डिप्रेशन एंड सुसाइड

अरविन्द विश्वकर्मा | NavprabhatTimes.com

लखनऊ: ब्लॉक यूं तो एक शब्द है किंतु यह किसी की जान ले भी सकता है। वैसे विकास की दृष्टि से प्रत्येक तहसील में कुछ खंड बनाए जाते हैं जिन्हें प्रशासनिक रूप से विकासखंड तो आम बोलचाल की भाषा में ब्लॉक कहते हैं। लकड़ी के टुकड़े विशेष तो भवनों के एक खंड को भी ब्लॉक कहते हैं। दूरसंचार क्रांति के साथ ही ब्लॉक शब्द का प्रचुर मात्रा में प्रयोग होने लगा, लेकिन ब्लॉक शब्द सोशलमीडिया पर ऐसे रूप में कदम रख चुका है कि यह किसी के लिए भी प्राणघातक हो सकता है।

भारत में यह सुशांत सिंह की हत्या या आत्महत्या और उसके पीछे की वजह डिप्रेशन के कारण के रूप में जाना जाएगा। विभिन्न माध्यमों पर किसी के द्वारा अभद्रता या परेशान करने पर लोग दूसरे पक्ष को ब्लॉक कर देते हैं। ऐसे तो यही ब्लॉक जब दो सच्चे प्रेमियों के बीच मामूली कहासुनी पर प्रयोग में लाया जाता है तो निश्चित ही एक पक्ष कुछ घंटों का वेट करता है और उसके बाद अन्य माध्यमों से रूठे यार को मनाने का प्रयास। कभी-कभी लोगों को इसमें सफलता मिल जाती है, लेकिन तुनक मिजाजी या जिद या स्पष्ट कहने का साहस ना होने पर दूसरा पक्ष हर माध्यम पर ब्लॉक करना शुरू कर देता है।

वर्तमान युवा पीढ़ी के लिव इन रिलेशनशिप में मामूली सी बातों पर संबंध विच्छेद और ब्लॉक आम है। ऐसे में वह पक्ष जो अपने साथी को खोना नहीं चाहता और दिमागी रूप से उसे अपना ही मानता है, धीरे-धीरे उम्मीदों के साथ ही तनाव में चला जाता है। वर्तमान परिस्थितियों व हालातों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि ब्लॉक जैसी सुविधा होनी तो चाहिए किन्तु इसे युवाओं को उसी तरीके से देना चाहिए जैसे कि घरों में परिजनों द्वारा बंद करने के बाद भी खिड़की या पड़ोसी के माध्यम से दो युगल एक दूसरे के टच में रह सकते हैं।

कॉलिंग में ब्लॉक करने के बाद भी यह मालूम होता है कि एक पक्ष बात करने का प्रयास कर रहा है किंतु फेसबुक और व्हाट्सएप्प जैसे अन्य माध्यम संदेशों को पूर्ण ब्लॉक कर देते हैं। जबकि दूसरे पक्ष के पास ऐसे कॉन्टैक्ट के नोटिफिकेशन को म्यूट का ऑप्शन उपलब्ध होता है। जो कि उसे बिना डिस्टर्ब किए दूसरे को डिप्रेशन में जाने से रोक सकता है। नंबर ब्लॉक के बाद होने वाली मौतों पर सरकार को गैर इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज करने का प्रावधान करना चाहिए क्योंकि संबंधों को अचानक तोड़ा जाना किसी भी परिस्थिति में उचित नहीं होता, हां संबंध आगे नहीं बढ़ पाएंगे तो भी वैसी स्थिति में स्पष्ट मना किया जा सकता है। दोनों को आपसी समझ के आधार पर दूरी बढ़ानी चाहिए न कि एकतरफा। वैसे भी यह माना जाता है कि किसी भी परिस्थिति में संवाद ही बेहतर विकल्प होता है। पूर्ण ब्लॉक के बदले दिन में मैसेज की संख्या सीमित या सीमित शब्दों में और कुछ शब्दों के ब्लॉक का प्रावधान होना चाहिए न कि पूर्ण ब्लॉक।

प्रेमी या प्रेमिका के मामले में यह ब्लॉक तीन से चार दिन तनाव के साथ इंतजार के लिए मानसिक रूप से तैयार करता है किंतु इसके बाद उम्मीदों के खत्म होते ही ब्लॉक होने वाला संवाद न होने की स्थिति में तनाव में जाने लगता है। कहा जा सकता है कि ब्लॉक के बाद तनाव का घातक समय हफ्ते से दस दिन का होता है। इस दरम्यान बहुत से लोग नकारात्मकता को नहीं समेट पाते और आहिस्ता-2 मर-मिटने जैसा निर्णय ले लेते हैं। ऐसी स्थिति के बाद भी यदि निराश हिराश या दुखी व्यक्ति संयुक्त परिवार में हो तो टेंशन उतना प्रभावी नहीं हो पाता, किन्तु आज की भागदौड़ तथा लिव इन रिलेशनशिप वाली जिंदगी में अपने लिए सोचने का वक्त भी कम ही लोगों को मिलता है तो संयुक्त परिवार में रहना बेमानी है। यही वह कारण है कि लोग डिप्रेशन में डूबते जाते हैं और दिमाग मे नकारात्मक विचारों की वृद्धि से ऐसे लोग आत्महत्या जैसा कृत्य करने से भी नहीं चूकते।

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