डॉ.करुणाशंकर उपाध्याय
अमेरिकी नौसेना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही विश्व की सबसे बड़ी नौसेना रही है। इसने पिछले 70 सालों में स्वयं को विश्व की सबसे शक्तिशालिनी नौसेना के रूप में प्रतिष्ठित किया है।सोवियत संघ के दौर में भी इसका वर्चस्व यथावत था। अनेक अभियानों में इसने अपनी शक्ति का लोहा भी मनवाया है, लेकिन सबका समय होता है और आज रणनीतिकार इस पर विचार कर रहे हैं कि क्या अमेरिकी नौसेना चीन-रूस के मुकाबले पिछड़ रही है? दरअसल चीनी नौसेना के तेज उभार के कारण आज इस आशंका को बल मिल रहा है। आज विश्व के रक्षा विशेषज्ञों के बीच यह गहन विमर्श का विषय बना हुआ है जो विश्व की आगामी नियति का संकेत कर रहा है।
आज चीन के पास कुल 624 युद्धपोत, रूस के पास 360 तथा अमेरिका के पास कुल 333 युद्ध पोत हैं। अमेरिकी युद्धपोतों में केवल 289 ही सक्रिय समुद्री भूमिका में हैं। यही कारण है कि उक्त चर्चा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बल मिल रहा है। लेकिन यह भी मानना होगा कि अमेरिका के पास बड़े युद्धपोत हैं। उसके सेवारत विमानवाहक पोतों की संख्या विश्व के सभी देशों के विमानवाहक पोतों की संख्या से अधिक है। इन विमानवाहक पोतों पर एफ-35 जैसे अत्याधुनिक विमान तैनात हैं, जिसके आस-पास भी दूसरे विमान नहीं ठहरते। इसी तरह किसी नौसेना की ताकत का अंदाजा उसके युद्धपोतों की जलीय विस्थापन क्षमता से भी लगाया जाता है। फलतः जब हम इस दृष्टि से विचार करते हैं तो पाते हैं कि अमेरिकी युद्धपोतों की कुल जलीय विस्थापन क्षमता 46 लाख टन के सामने चीनी नौसेना के युद्धपोत 18 लाख टन तथा रूसी नौसेना के युद्धपोत 12 लाख टन विस्थापन क्षमता से युक्त हैं। इस तरह चीन और रूस के युद्धपोत अमेरिका के मुकाबले काफी छोटे हैं, परंतु युद्ध के समय बड़े युद्धपोतों की सुरक्षा ज्यादा चुनौतीपूर्ण होती है।छोटे -छोटे युद्धपोत लड़ाई के समय अपनी मिसाइलों से हमला करके जल्दी हट सकते हैं।
किसी भी देश की नौसैनिक ताकत का आकलन उसकी पनडुब्बियों से किया जाता है। आज अमेरिका के पास कुल 53 पनडुब्बी, रूस के पास 54 तथा चीन के पास कुल 63 पनडुब्बियां हैं। लेकिन यहां भी वही बात आती है। अमेरिका की अधिकांश पनडुब्बियां बड़ी और परमाणु ऊर्जा से परिचालित हैं। अमेरिकी पनडुब्बियों पर कुल 2300 तारपीडो तथा मिसाइलें तैनात हैं, जबकि रूसी पनडुब्बियों पर 1700 तथा चीनी पनडुब्बियों पर 1100 तारपीडो तथा मिसाइलें लगी हैं। ऐसी स्थिति में अमेरिकी पनडुब्बियों की प्रहार करने की क्षमता ज्यादा सिद्ध होती है। अमेरिका के लिए सुकून की बात केवल यही है कि उसके सारे युद्धपोत लड़ाई के दौरान 12000 मिसाइलें, चीनी युद्धपोत 5200 तथा रूसी युद्धपोत 3300 मिसाइलें ले जा सकते हैं। जहां तक रूस का सवाल है तो उसके समक्ष अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, फ्रांस तथा नाटो सदस्य देशों की नौसेनाएं भी हैं। इस तरह जब चीन का मामला आता है तो अमेरिका जापान, आस्ट्रेलिया के अलावा भारतीय नौसेना को भी अपने पक्ष में देखता है। बावजूद इसके अमेरिकी नौसेना को तुरंत अतिरिक्त युद्धपोतों तथा पनडुब्बियों की आवश्यकता है। उसे 500 युद्धपोतों वाली नौसेना बनना होगा। उसे अपेक्षाकृत फ्रिग्रेट्स एवं मिसाइल नौकाओं पर विशेष ध्यान देना होगा, अन्यथा आने वाले समय में उसे कठिन चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। अमेरिका के लिए एक आसान विकल्प यह भी हो सकता है कि वह जापान , आस्ट्रेलिया, वियतनाम तथा भारत की नौसेना को अत्याधुनिक और शक्तिशाली बनाने में भरपूर सहयोग करे।
-लेखक अंतरराष्ट्रीय व प्रतिरक्षा मामलों के विशेषज्ञ हैं।