150-सूर-सखा-वात्सल्य सँग क्रीड़ित शिशु ‘नीहार’
अष्टछाप-वीणा सजी, रम्य राग-शृंगार।
व्रज-रज-मण्डित छा गयी सौरभ-सनी बयार।।2189।।
पुष्टिमार्ग-जलयान सम उपमित कविवर सूर।
व्रजभाषा के भाल पर बन सुहाग-सिन्दूर।।2190।।
सख्य भाव की भक्ति मन, पुलकित हृदय अपार।
भाव यशोदा का लिए उमड़े पारावार।।2191।।
बाल कन्हैया हो गये सूरदास मन-मीत।
‘सागर-मन्थन’ से कढ़े रस वात्सल्य पुनीत।।2192।।
रूप निहारे है कभी, रंग, निराली चाल।
सदा बलैया ले रही मैया रहे निहाल।।2193।।
केहरि-नख हरि-कण्ठ लख, सजे डिठौना माथ।
माँ की ममता से धनी विहँसे दीनानाथ।।2194।।
घुटनों के बल चल रहे, सुखी भये व्रजराज।
इन्द्र अकिंचन-सा लगे, धन-कुबेर-सुख-साज।।2195।।
कभी पालने में विहँस पाँव-अँगूठा चूस।
त्रिभुवन कम्पित हो उठा, वृन्द विवुध मायूस।।2196।।
मनिमय आँगन देखिए पकड़े अपनी छाँह।
नन्द-यशोदा के हृदय हुलसे, पकड़े बाँह।।2197।।
कभी उठाये गोद निज पुलकित मन में मोद।
निरखे चित्र-विचित्र बहु मोहक बाल-विनोद।।2198।।
बाल-सुलभ किलकारियाँ, चंचल बाल-विनोद।
रसमय वर्षा सावनी–भीगे मन का मोद।।2199।।
तातो जल, उबटन लिए कनक-कटोरी तेल।
मैया पीछे भागती, कान्हा खेले खेल।।2200।।
अटपट बोली तोतली, लटपट डगमग पाँव।
माँ की उँगली थाम थिर, भागे देकर दाँव।।2201।।
दमके घन-वन दामिनी दूध-दँतुलिया चार।
धीरे-धीरे हो रहा कान्हा भी हुशियार।।2202।।
हर क्रीड़ा मनभावनी, रस-महीप शृंगार।
पावन भावन स्नेहमय रस वात्सल्य अपार।।2203।।
सबके उर में गड़ गये मोहन माखनचोर।
चपल यशोदा-लाडले, भोले नन्द-किशोर।।2204।।
एक झलक मिल जाय बस, गोपी-जीवन धन्य।
ऋचा-रूप आराधिका, सबके कृष्ण अनन्य।।2205।।
सबके वल्लभ कृष्ण वे, भक्ति-भावना-प्रीत।
हृदय-विपंची में बहे एक रागमय गीत।।2206।।
ग्वाल-बाल माखन-छके, ग्वालिनि-लोचन लोभ।
झूठे सभी उलाहने, झूठ-मूठ का क्षोभ।।2207।।
साँटी ले पीछे पड़ी उलाहने से खिन्न।
बँधे उलूखल में सहज माँ के हृदय-अभिन्न।।2208।।
कभी खीजती, मन मुदित उमड़े स्नेह-दुलार।
प्रान निछावर-सा किये देती तन-मन वार।।2209।।
कैसी-कैसी गोपियाँ–कहतीं ‘ये चितचोर’।
भ्रमरी जैसी डोलतीं बँधी प्रेम की डोर।।2210।।
छीना-झपटी सी मची ‘कान्हा माखन खाय’।
‘निरखे जी भर बावली, चोरी-चुपके आय’।।2211।।
तरसे देवी-देवता सुलख यशोदा-भाग्य।
यती-व्रती-तापस विकल भरे भक्ति-वैराग्य।।2212।।
मधुर-मनोहर बाँसुरी, जादू-भरे निनाद।
सुर-नर-मुनि-गन्धर्व को रहे याद मधु स्वाद।।2213।।
ज्योति-काव्य तिमिरान्ध दृग अमर प्रेम-आधार।
सूर-सखा-वात्सल्य सँग क्रीड़ित शिशु ‘नीहार’।।2214।।
रचनाकाल: 27 जून, 2023
बलिया, उत्तर प्रदेश
[नीहार-दोहा-महासागर : चतुर्थ अर्णव (तृतीय हिल्लोल) अमलदार नीहार]
डाॅ. अमलदार ‘नीहार’
अध्यक्ष, हिन्दी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय,
बलिया
सम्पर्क: मो. 9454032550
परिचय
- डाॅ. अमलदार ‘नीहार’
अध्यक्ष, हिन्दी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया (उ.प्र.) – 277001
- उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान और संस्कृत संस्थानम् उत्तर प्रदेश (उत्तर प्रदेश सरकार) द्वारा अपनी साहित्य कृति ‘रघुवंश-प्रकाश’ के लिए 2015 में ‘सुब्रह्मण्य भारती’ तथा 2016 में ‘विविध’ पुरस्कार से सम्मानित, इसके अलावा अनेक साहित्यिक संस्थानों से बराबर सम्मानित।
- अद्यावधि साहित्य की अनेक विधाओं-(गद्य तथा पद्य-कहानी, उपन्यास, नाटक, निबन्ध, ललित निबन्ध, यात्रा-संस्मरण, जीवनी, आत्मकथात्मक संस्मरण, शोधलेख, डायरी, सुभाषित, दोहा, कवित्त, गीत-ग़ज़ल तथा विभिन्न प्रकार की कविताएँ, संस्कृत से हिन्दी में काव्यनिबद्ध भावानुवाद), संपादन तथा भाष्य आदि में सृजनरत और विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित।
- अद्यतन कुल 17 पुस्तकें प्रकाशित, 3 पुस्तकें प्रकाशनाधीन और लगभग डेढ़ दर्जन अन्य अप्रकाशित मौलिक पुस्तकों के प्रतिष्ठित रचनाकार : कवि तथा लेखक।
सम्प्रति :
अध्यक्ष, हिंदी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया (उ.प्र.) – 277001
मूल निवास :
ग्राम-जनापुर पनियरियाँ, जौनपुर