- डॉ. आलोकरंजन पांडेय (हिंदी विभाग, रामानुजन महाविद्यालय, कालका जी, नयी दिल्ली)
भारतीय परंपरा सदा-सर्वदा से ही गुरु अथवा शिक्षक के प्रति आस्थावान रही है। वह उसे देश, समाज, नागरिकों के निर्माता के रूप में देखती रही है। आज हम शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में देश, समाज, साहित्य और संस्कृति के उन्नयन में अनवरत रूप से सन्नद्ध एक ऐसे ही सुप्रतिष्ठ प्राध्यापक के जीवन और कृतित्व का विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं। हिंदी के प्रख्यात सांस्कृतिक आलोचक, रक्षा व विदेश मामलों के विशेषज्ञ और मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ.करुणाशंकर उपाध्याय का जन्म 15 अप्रैल 1968 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद के घोरकातालुकदारी नामक गांव में हुआ। आपकी 12 वीं तक की शिक्षा कालूराम इंटरमीडिएट काॅलेज, शीतलागंज, प्रतापगढ़ में हुई। तदुपरांत आप उच्च शिक्षा हेतु मुंबई आ गए। आपने मुंबई विश्वविद्यालय से बी.ए., एम.ए.और पी-एच.डी की उपाधि प्राप्त की। साथ ही, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की अध्येता वृत्तिके अंतर्गत ‘पाश्चात्य काव्यचिंतन के विविध आंदोलन’ विषय पर अपना पोस्ट डाॅक्टरल शोधकार्य (2001) भी सम्पन्न किया। आपने मारीशस, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात समेत अनेक देशों की यात्राएं भी की हैं और वहां पर हिंदी की स्थिति का विधिवत आकलन भी किया है।
डॉ.उपाध्याय अंतर्दृष्टि और विश्वसंदृष्टि सम्पन्न आलोचक हैं। इनके अध्ययन का पाट अत्यंत चौड़ा है। इन्होंने वैदिक काल से लेकर अब तक की भारतीय परंपरा, साहित्य, दर्शन, इतिहास तथा भारतीय चिंतनात्मकता का गहन अध्ययन किया है।दूसरी ओर होमर से लेकर उत्तरआधुनिकता तक पाश्चात्य साहित्य और काव्यशास्त्रीय चिंतन को भी आत्मसात किया है। फलतः इनकी आलोचना दृष्टि भारतवर्ष की गतिशील लोकोन्मुख परंपरा, भारतीय साहित्य के श्रेष्ठतम और वरेण्य पक्षों तथा पूर्व और पश्चिम के द्वन्द्व तथा अंतरावलंबन के सानुपातिक सामंजस्य से निर्मित हुई है। डॉ.उपाध्याय की आलोचना दृष्टि को समझने के लिए इनका स्वयं का एक कथन उल्लेखनीय है। इन्होंने लिखा है कि “काल के अनंत प्रवाह में कभी-कभी ऐसा अद्भुत क्षण आता है जब काल स्वयं मनुष्य को अपना इतिहास बनाने तथा अपनी नियति का नियंता बनने का अवसर प्रदान करता है।” यह कथन डॉ.उपाध्याय के व्यक्तित्व पर अक्षरशः घटित होता है। ये स्वयं अपने ही नियंता नहीं हैं, अपितु एक सच्चे प्राध्यापक और आलोचक की भांति देश, समाज, साहित्य और संस्कृति के प्रति अपने दायित्व का भी सम्यक् निर्वाह कर रहे हैं। आप देखने में जितने सरल, निश्चल, उदार और विनम्र हैं आपकी अभिव्यक्ति उतनी ही खरी, सबल तथा प्रभावी है । इनकी आलोचना कृति के अंतस्तल में सतर्क प्रवेश द्वारा उसमें निहित अर्थ की सुनी और अनसुनी अनुगूँजों को सुनने-सुनाने का कार्य करती है। इन्होंने भारत और भारतीय साहित्य को समझने के लिए शिव के परिवार में विद्यमान विरुद्धों का सामंजस्य, शिवत्व भाव तथा श्रेय एवं प्रेय के संश्लेषण को आदर्श प्रतिमान माना है। चूंकि हरेक युग परस्पर विरोधी तत्त्वों तथा प्रवृत्तियों को लेकर चलता है अतः उसकी अंतरवृत्तियों का उद्घाटन इसी रूप में संभव है।इनकी आलोचना दृष्टि वेद, उपनिषद, वाल्मीकि, व्यास, कालिदास, भारवि, भवभूति, जायसी, तुलसी, जयशंकर प्रसाद,निराला, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, अज्ञेय, मुक्तिबोध, विन्दा करंदीकर, कुंवर नारायण, चित्रामुद्गल जैसे भारतीय रचनाकारों तथा होमर, अरस्तू, लोंजाइनस , मैथ्यू आर्नल्ड, इलियट , रोलां बार्थ एवं जाॅक देरिदा जैसे पश्चिमी साहित्य चिंतकों के विचारों के सार- संश्लेषण से निर्मित हुई है। फलतः वह अत्यंत प्रशस्त एवं गहन है।इनका मानना है कि हर रचना का विश्लेषण उसके युगीन मूल्यों तथा संदर्भों की सापेक्षता में करना चाहिए। साथ ही, उसमें निहित कालजयी तत्त्वों के सम्यक् निर्वचन द्वारा ही उसके महत्त्व का निर्धारण संभव है।
डॉ.उपाध्याय का मानना है कि आलोचक को आचार्य रामचंद्र शुक्ल की तरह बहु-पठित और बहुश्रुत होना चाहिए। उसे लगातार ज्ञान-विज्ञान और साहित्य की नवीनतम उपलब्धियों से अनुप्राणित होना चाहिए। इनकी आलोचना वैचारिक एवं सैद्धांतिक धरातल पर ग्रहण और त्याग के विवेक पर आधारित है। वह कृति के वस्तुनिष्ठ एवं पाठ-केद्रित विश्लेषण के प्रतिमान पर आगे बढ़ती है। वह नवीनता, मौलिकता, गहनता और विश्व-मनुष्यता के मंगल तथा उन्नयन को साहित्यक विश्लेषण के सार्वभौम-शास्वत प्रतिमान के तौर पर निरूपित करती है। वह अपने प्रशस्त रूप में गहन- स्तरीय और वृहद- स्तरीय दोनों है। एक संतुलित, समग्रतावादी और सांस्कृतिक चिंतक-आलोचक के रूप में आपका व्यक्तित्व निरंतर विकास मान है। एक बड़ी चिंता के साथ आलोचना में सक्रिय होने के कारण आप एक विराट संभावना को लेकर भी चल रहे हैं। आप हिंदी आलोचना को विश्वस्तरीय विमर्श का हिस्सा बनाने के लिए संकल्पित हैं जिससे हिंदी तथा रचनात्मक भारतीय साहित्य के साथ न्याय हो सके। उसे विश्वस्तरीय विमर्श के केंद्र में लाया जा सके।
ध्यातव्य है डॉ.उपाध्याय की अब तक प्रकाशित मौलिक आलोचनात्मक पुस्तकों में ‘सर्जना की परख (1995), आधुनिक हिंदी कविता में काव्यचिंतन (1999), मध्यकालीन काव्यः चिंतन और संवेदना (2002), पाश्चात्य काव्य चिंतन (2003), आधुनिक कविता का पुनर्पाठ (2008), हिंदी कथा साहित्य का पुनर्पाठ (2008), विविधा (2008), हिंदी का विश्वसंदर्भ (2008), हिंदी साहित्य: मूल्यांकन और मूल्यांकन (2012), सृजन के अनछुए संदर्भ (2015), साहित्य और संस्कृति के सरोकार (2016), पाश्चात्य काव्य चिंतन: आभिजात्यवाद से उत्तर आधुनिकता वाद तक (2018) और मध्यकालीन कविता का पुनर्पाठ’ (2020) का समावेश है। इसके अलावा इन्होंने ‘युवक भारती’ (2006), शोभनाथ यादव की सौंदर्यधर्मी कविताएं(2007), आवां विमर्श (2010), सृजन और सरोकार (2011), साहित्य साधक (2012),वक्रतुण्ड: मिथक की समकालीनता'(2013), ब्लैक होल विमर्श( 2014), गुरु जाम्भोजी की वाणी में लोकमंगल (2017),सृजन और संदर्भ (2018), अप्रतिम भारत (2018), उद्भ्रांत का काव्य: बहुआयामी विमर्श(2019), तथा ‘चित्रामुद्गल संचयन (2020) का संपादन भी किया है। डॉ.उपाध्याय ने तीन विश्वकोशों में सह-लेखन और 8 पुस्तकों का सह-संपादन भी किया है। इन्होंने 50 से अधिक महत्वपूर्ण पुस्तकों की भूमिकाएँ भी लिखी हैं। इनके अब तक विविध पत्र-पत्रिकाओं में 380 से अधिक आलेख/ शोध-लेख भी प्रकाशित हो चुके हैं।
डॉ. उपाध्याय भारतीय एवं पाश्चात्य कविता और काव्यशास्त्र के अधिकारी विद्वान हैं। इनके मार्गदर्शन में अब तक 32 शोधार्थी पी-एच.डी. तथा 52 छात्र एम. फिल.उपाधि प्राप्त कर चुके हैं। डॉ.उपाध्याय को साहित्यिक एवं आलोचनात्मक अवदान के लिए अब तक दो दर्जन से अधिक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार व सम्मान भी मिल चुके हैं, जिनमें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी का बाबूराव विष्णु पराड़कर पुरस्कार, हिंदी सेवी सम्मान, पं.दीनदयाल उपाध्याय आदर्श शिक्षक सम्मान, आशीर्वाद राजभाषा सम्मान, विश्वहिंदी सेवा सम्मान, महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी का आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी सम्मान, शिक्षक भारती गौरव सम्मान, मुंबई विश्वविद्यालय का सर्वोत्तम शिक्षक सम्मान , हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग का सम्मेलन सम्मान, जीवंती फाउंडेशन का साहित्य गौरव सम्मान, भारती गौरव सम्मान, व्यंग्य-यात्रा सम्मान, मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा समिति सम्मान, मैथिल कोकिल विद्यापति सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान , महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी का पद्मश्री अनंत गोपाल शेवडे सम्मान इत्यादि का समावेश है। डॉ.उपाध्याय साहित्य अकादेमी, भारत सरकार, मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी, कमला गोइन्का फाउंडेशन समेत दर्जनों संस्थानों की पुरस्कार चयन समिति के सदस्य हैं। आप भारत सरकार के परमाणु ऊर्जा विभाग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, विश्वविश्वविद्यालय अनुदान आयोग, देश के विविध विश्वविद्यालयों, संघ लोक सेवा आयोग, विविध प्रांतों के राज्य लोक सेवा आयोग, महारत्न कंपनियों एवं सार्वजनिक क्षेत्र के विविध बैंकों की अनेक महत्वपूर्ण समितियों के सदस्य भी हैं। आप आइ.आइ.एम.टी.विश्वविद्यालय, मेरठ के विद्या परिषद के सदस्य भी हैं। डॉ.उपाध्याय भारतीय परंपरा में उपलब्ध अनंत ज्ञानराशि को नवीनतम उपलब्धियों के आलोक में उद्भासित करने का कार्य कर रहे हैं। आप भारतीय परंपरा के सर्वोत्तम और सारतत्त्वों की गहरी समझ द्वारा उसका पुनर्पाठ करते हैं। इन्होंने आलोचना के क्षेत्र में व्याप्त मित्रवाद तथा शत्रुवाद का विरोध किया है। इनका मानना है कि हमें अपनी इतिहास दृष्टि, आलोचना दृष्टि तथा विश्वसंदृष्टि का विकास भारतीय स्रोतों से करना चाहिए। आप न केवल हिंदी के चर्चित आलोचक हैं अपितु हिंदी के अत्यंत सक्रिय योद्धा भी हैं।
डॉ.उपाध्याय ने अपनी पुस्तक ‘हिंदी का विश्व संदर्भ’ में हिंदी को विश्व की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा सिद्ध किया है। इनके अनुसार हिंदी 64 करोड़ लोगों की मातृभाषा, 24 करोड़ लोगों की दूसरी भाषा और 42करोड़ लोगों की तीसरी, चौथी, पांचवीं अथवा विदेशी भाषा है। इस आधार पर वह संपूर्ण विश्व में 130 करोड़ से अधिक लोगों द्वारा प्रयुक्त होती है। इनकी पुस्तक के आंकड़ों को आधार बनाकर विश्व के सबसे बड़े दैनिक समाचार-पत्र ‘दैनिक जागरण’ ने 10 जनवरी 2017 को उसे अपना मुख्य समाचार बनाया था जिसे उसके सारे संस्करणों में स्थान मिला था। आप हिंदी के संयुक्त परिवार की रक्षा के लिए लगातार प्रयासरत हैं और बोलियों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए अलग से अकादमी बनाने की मांग कर रहे हैं। आप न केवल हिंदी को उच्च न्यायालयों एवं सर्वोच्च न्यायालय की भाषा बनवाने के लिए कृतसंकल्प हैं, अपितु उसे संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए भी प्रयासरत हैं। इस दिशा में आप सम्बद्ध पक्षों को लगातार लिख रहे हैं। आपने भाषा के प्रश्न को मानवाधिकार से जोड़ा है। इसके अलावा आप आर्थिक, विदेश और रक्षा मामलों के विशेषज्ञ के रूप में लगातार चैनलों पर आमंत्रित किए जाते हैं तथा अखबारों में लेखन करते रहते हैं। इन्होंने अपने अध्ययन और लेखन के दायरे को विषय विशेष की मर्यादा में सीमित नहीं किया है। इस दौर में उत्तर आधुनिकतावादी जिस सीमाहीन खुलेपन की प्रतिष्ठा करते हैं वह वैचारिक खुलापन इनके संपूर्ण लेखन का केन्द्रीय वैशिष्ट्य है। आप वर्तमान समय में अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्य भारती संस्था के अंतरराष्ट्रीय महासचिव भी हैं और हिंदी भाषा के वैश्विक प्रसार-प्रसार में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। डॉ.उपाध्याय हिंदी के 21वीं सदी के सबसे ऊर्जावान और संभावनावान आलोचकों में से हैं जो भारत के साथ-साथ विदेशों में लिखे जा रहे साहित्य के मूल्यांकन तथा हिंदी साहित्य के इतिहास में उसे यथोचित स्थान दिलाने के लिए प्रयासरत हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि ये अपनी उपलब्धियों से हिंदी जगत को चकित करेंगे।
डॉ.करुणाशंकर उपाध्याय
संप्रति: प्रोफेसर एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग मुंबई विश्वविद्यालय,
मुंबई-400098
संपर्क: 1102 सी-विंग, लक्षचंडी हाइट्स , कृष्णवाटिका मार्ग, गोकुलधाम, गोरेगांव पूर्व मुंबई 400063
मोबाइल: 09167921043/ 09869511876
ई-मेल: dr.krupadhyay@gmail. com
सभी हिंदी प्रेमियों को नमन — आप सभी मदद कीजिये — सत्र 2016 – 17 क्लास -10 की बोर्ड परीक्षा के हिन्दी विषय में मेरे पढ़ाए बच्चों ने भारत के अतिरिक्त संसार के अन्य सभी CBSE स्कूलों में टॉप किया था उसी के बाद से कम पढ़ी लिखी बिना CBSE Exp. वाली केरलियन शिक्षिका को क्लास – 9 में हिन्दी पढ़ाने को दे दिया गया – उन्हें हिन्दी HOD भी बना दिया गया है– ( हिन्दी HOD रहते हुए 2016 में उन्होंने हिन्दी दिवस नहीं मनाने दिया , क्लास – 7 से वीर कुंअर सिंह जैसे राष्ट्रवादी और देशभक्ति पूर्ण पाठ को कोर्स से निकाल दिया ,क्लास – 6 में महत्वपूर्ण कविता महारानी लक्ष्मीबाई को only for reading के लिए कर दिया, बिना किसी योजना के अव्यवस्था फैलाकर धीरे -धीरे हिन्दी की जड़ काटने में लगी हैं ) | — क्लास 1 से 8 तक के शिक्षक -शिक्षिकाओं पर मलयाली प्रिंसिपल का दबाव बनने लगा — हिन्दी को भी ENGLISH में पढ़ाना है , अधिकतर केरलियन हिन्दी शिक्षिकाएँ “ हिन्दी ” तक को बोर्ड पर सही नहीं लिख पाती हैं — रिजल्ट डाउन होना स्वाभाविक ही था – 3) गुजरात से आई एक छात्रा ने 12 में हिन्दी 6th subject के रूप में लिया था, बार -बार समझाने के बावजूद ईसाई केरलियन प्रिंसिपल (जिन्होंने नेशनल ऐंथम को हटाकर स्कूल ऐंथम शुरू करवाया था, आते ही मीटिंग में कहा था ” English is my religion ” ) ने पहले उसकी एक्टिविटी व अन्य परीक्षाएँ नहीं होने दिया , 18- 12 -19 के सीबीएसई के ऑर्डर आने पर उस छात्रा का रिजल्ट खराब करने के लिए -उसी अनुभवहीन मलयाली शिक्षिका को केवल एक्टिविटी कराने का ऑर्डर दिया – छात्रा के निवेदन पर भी अभ्यास के लिए अन्य परीक्षाओं की अनुमति नहीं दिये जबकि हिन्दी शिक्षक तैयार थे — समझाने पर सीधे जवाब आया ” मैं CBSE को नहीं मानता हूँ – यहाँ मैं ही सबकुछ हूँ—–
[…] डॉ. उपाध्याय की अब तक प्रकाशित मौलिक आलोचनात्मक पुस्तकों में ‘सर्जना की परख’ (१९९३), […]
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