लकड़ी दुर्लभ–दाह को मुश्किल आग मसान।
ऐसा कौन गुनाह जो, सहे मौत अपमान।। 1962।।
गंगा ने पूरे किये ‘माँ’ के सारे फर्ज़।
लाश तैरती गोद में, भारी ममता-कर्ज़।। 1963।।
दिल पर पत्थर रख लिए, सहे घोर अपमान।
मानवता-शव-सीस पर काक, खींचते श्वान।। 1964।।
दुबके-दुबके रह गये दिलवर शाहंशाह।
मानवता के दर्द की सबने सुनी कराह।। 1965।।
धर्म नहीं पैदा करे भेद, घृणा, विद्वेष।
मानवता जो मर गयी, कहाँ बचा कुछ शेष।। 1966।।
दिल की धड़कन एक-सी, एक लहू का रंग।
अनुभव सुख-दुख एक सब,जन्म-मरण के ढंग।। 1967।।
एक प्रकृति की गोद यह–पैदा हुए– जवान।
पंचभूत-निर्माण तनु, मरे-खपे निष्प्रान।। 1968।।
भोलापन, मासूमियत, निश्छल शिशु नादान।
दुनियादारी छू गयी, छूत पाप के सान।। 1969।।
चढ़ी जवानी, रंग नव, सपने सजल उमंग।
गर्म लहू, उत्ताप नव, अनगिन भाव-तरंग।। 1970।।
उमर काल-रथ बैठ–रय, जगर-मगर जग-सैर।
कभी करे बहलाव मन, प्रीति किसी से, बैर।। 1971।।
मिली खुशी तो फूलकर कुप्पा, मालामाल।
बदकिस्मत कुछ जन्म से दीन-दुखी, कंगाल।। 1972।।
पल-छिन ठहरे ज़िन्दगी, कहो हुबाबे-आब।
एक-एक कर पृष्ठ ज्यों पलटे पवन किताब।। 1973।।
कर्म किया क्या, देख लो, साधे कितने स्वार्थ।
लिपटा पाप-मवाद में, भूल गया परमार्थ।। 1974।।
घर्घर रथमय काल-गति, बिना रुके दिन-रात।
जहाँ थमे, परिणय वहीं ठहरेगी बारात।। 1975।।
रंग बदल जर्जर जरा-दस्तक बारम्बार।
षड्मुख अरि जो उर-गुहा, करे निबल–बीमार।। 1976।।
कोई सब कुछ भूलकर, चले स्वार्थ की राह।
कुछ का जीवन लोक-हित, त्राण प्राण-सन्नाह।। 1977।।
कुछ में तानाशाह मन, कुछ में प्रेम अपार।
कुछ में केवल क्रूरता, कुछ करुणा-आगार।। 1978।।
सार्थक उसकी ज़िन्दगी, दे सबको सुख-दान।
उसका भी कल्यान है, जिसमें जग-कल्यान।। 1979।।
छीन-झपट तू क्यों करे, धरे अमानुष-भाव।
घृणा अतुल, दुर्मद सबल, मानवता-उर घाव।। 1980।।
“मैं-मैं” करता रह गया, जगा न ‘जन’ से प्यार।
जाने वो दुख-दर्द क्या,रिश्ता,घर-परिवार।। 1981।।
“मेरे लिए कुटुम्ब जग”,कहना क्या आसान।
तेरा जो भी आचरन, कौन भला अनजान।। 1982।।
खुली आँख से देख तू, किले ख्वाब के ध्वस्त।
तू भी कोई चीज है? दारोगा जग पस्त।। 1983।।
अहंकार की हार में मानवता की जीत।
घृणा अगर अपराजिता, कौन बनाये मीत।। 1984।।
कब तक ठहरे ज़िन्दगी, वक़्त नदी की धार।
सिर पर काली मौत है, कौन लखे ‘नीहार’।। 1985।।
रचनाकाल : 20 अगस्त, 2021
बलिया, उत्तर प्रदेश
[नीहार-दोहा-महासागर : तृतीय अर्णव (तृतीय हिल्लोल) अमलदार ‘नीहार’]
लेखक परिचय
- डाॅ. अमलदार ‘नीहार’
अध्यक्ष, हिन्दी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया (उ.प्र.) – 277001
- उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान और संस्कृत संस्थानम् उत्तर प्रदेश (उत्तर प्रदेश सरकार) द्वारा अपनी साहित्य कृति ‘रघुवंश-प्रकाश’ के लिए 2015 में ‘सुब्रह्मण्य भारती’ तथा 2016 में ‘विविध’ पुरस्कार से सम्मानित, इसके अलावा अनेक साहित्यिक संस्थानों से बराबर सम्मानित।
- अद्यावधि साहित्य की अनेक विधाओं-(गद्य तथा पद्य-कहानी, उपन्यास, नाटक, निबन्ध, ललित निबन्ध, यात्रा-संस्मरण, जीवनी, आत्मकथात्मक संस्मरण, शोधलेख, डायरी, सुभाषित, दोहा, कवित्त, गीत-ग़ज़ल तथा विभिन्न प्रकार की कविताएँ, संस्कृत से हिन्दी में काव्यनिबद्ध भावानुवाद), संपादन तथा भाष्य आदि में सृजनरत और विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित।
- अद्यतन कुल 13 पुस्तकें प्रकाशित, ४ पुस्तकें प्रकाशनाधीन और लगभग डेढ़ दर्जन अन्य अप्रकाशित मौलिक पुस्तकों के प्रतिष्ठित रचनाकार : कवि तथा लेखक।
सम्प्रति :
अध्यक्ष, हिंदी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया (उ.प्र.) – 277001
मूल निवास :
ग्राम-जनापुर पनियरियाँ, जौनपुर
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