सिंहभूमि जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन की ओर से रविवार 31 अक्टूबर को जमशेदपुर स्थित तुलसी भवन में आयोजित एक समारोह में प्रख्यात आलोचक और मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक डाॅ.करुणाशंकर उपाध्याय को स्वदेश स्मृति सम्मान दिया गया। डाॅ.उपाध्याय को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान जमशेदपुर के निदेशक डाॅ.करुणेशकुमार शुक्ल, वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ.बालमुकुंद पैनाली और सिद्धिनाथ सिंह, सदस्य, अखिल भारतीय ग्राम विकास द्वारा मानपत्र, अंगवस्त्र, श्रीफल और 51 हजार रुपए की राशि देकर सम्मानित किया गया ।
समारोह का आरंभ उपस्थित अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। प्रसन्न वदन मेहता ने स्वागत भाषण दिया और वंदे शंकर सिंह ने विषय की प्रस्तावना करते हुए मैक्समूलर और मैकाले के षडयंत्र की ओर ध्यान आकृष्ट किया। यमुना तिवारी व्यथित ने डाॅ.करुणाशंकर उपाध्याय के सम्मान में स्वरचित कविता पढ़ी और दिव्येंदु त्रिपाठी ने सम्मान पत्र का वाचन किया। डाॅ.करुणाशंकर उपाध्याय ने अपने वक्तव्य में स्वदेश प्रभाकर द्वारा स्वदेशी आंदोलन के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि हमारे प्रधान मंत्री जिस आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना की बात करते हैं, वह हिंदी और भारतीय भाषाओं के द्वारा ही संभव है। विकास का संबंध स्वभाषा से है। विश्व के सभी देशों ने अपनी भाषा में विकास किया है। यहां तक कि इजराइल जैसे छोटे से राष्ट्र ने हिब्रू में उच्चस्तरीय शोधकार्य करके एक दर्जन से अधिक नोबेल पुरस्कार जीते हैं। हमें इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को उसकी मूल भावना के साथ लागू करना होगा।हम अपनी भाषा में ही नवाचार और विश्व स्तरीय मौलिक अनुसंधान कर सकते हैं।
डाॅ.उपाध्याय ने कहा कि हमें यह स्मरण रखना होगा कि साहित्य कालजयी होता है, भाषाएं नहीं। यह बात हम संस्कृत के उदाहरण से समझ सकते हैं। अतः हिंदी और भारतीय भाषाओं के विकास के लिए यह जरूरी है कि हम शिक्षा और जीवन के विविध क्षेत्रों में उनका प्रयोग करें। आज गूगल, नई तकनीक और सोशल मीडिया में हिंदी वर्चस्वकारी भूमिका में है। हमें बदलते समय और समाज की चुनौतियों के अनुरूप समायोजन करते हुए इस दिशा में गंभीर एवं बहुस्तरीय प्रयास करने होंगे। भारतीय संस्कृति अपने आरंभ से विश्वबोध और विश्वमानवतावाद को लेकर चली है। हमारा शांतिमंत्र ब्रह्मांड व्यापी शांति की परिकल्पना प्रस्तुत करता है। ब्रिटिश इतिहासकारों ने सिंधु-सरस्वती सभ्यता को सिंधु घाटी की सभ्यता कहकर वैदिक काल के ऐतिहासिक सूत्रों को विकृत किया। अब जब सरस्वती नदी की विधिवत खोज हो चुकी है तब हम वैदिक एवं संस्कृत साहित्य के सतर्क पाठ द्वारा भारतीय इतिहास के अनछुए संदर्भों का विरहस्यीकरण कर सकते हैं। अतः संपूर्ण भारतीय इतिहास को सही संदर्भ में दुबारा लिखने की जरूरत है, जिससे हम अपनी ज्ञान परंपरा को वर्तमान संदर्भों में विश्लेषित कर सकें।
इस मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में एन.आई.टी. के निदेशक डाॅ.करुणेशकुमार शुक्ल ने कहा कि हम भारतीयों को तकनीकी दक्षता अपनी भाषा में ही मिल सकती है। हमने एन.आई.टी.में हिंदी माध्यम में पाठ्यक्रम आरंभ किया है और मुझे विश्वास है कि वह दिन दूर नहीं है जब हम प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी महाशक्ति बनेंगे। इस क्षेत्र में हम करुणाशंकर उपाध्याय जैसे गुरुओं से भी सहयोग लेंगे। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित सिद्धनाथ सिंह ने कहा कि डाॅ.उपाध्याय का सम्मान भारत बोध का सम्मान है। यह भारतीय मनीषा का सम्मान है। इनके विस्तृत वक्तव्य और गंभीर लेखन से एक आश्वस्ति मिलती है। हमें विश्वास है कि ऐसे गुरुओं के रहते हुए संस्कार और संस्कृति का उन्नयन होता रहेगा।
कार्यक्रम के अध्यक्ष डाॅ.बालमुकुंद पैनाली ने कहा कि डाॅ.उपाध्याय को स्वदेश स्मृति सम्मान देकर संस्था ने स्वदेश प्रभाकर की स्वावलंबी सोच का सम्मान किया है। डाॅ.उपाध्याय राष्ट्र निर्माण का कार्य कर रहे हैं। इन्होंने बहुत कम उम्र में अनेक गंभीर पुस्तकों का लेखन और शोधनिर्देशन किया है।ऐसे विद्वानों के कंधे पर हिंदी आलोचना का भविष्य सुरक्षित है। छात्रों के हित में इनका कार्य राष्ट्रीय आकांक्षाओं की पूर्ति में सहायक हो रहा है।ये एक बड़ी संभावना लेकर चल रहे हैं। इनके वक्तव्य से गहन अध्ययन और प्रशस्त चिंतन का प्रमाण मिलता है।मैं इनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं।
कार्यक्रम का संचालन मानद महासचिव प्रसेनजित तिवारी ने किया और विद्यासागर लाभ ने धन्यवाद ज्ञापित किया । इस मौके पर संस्था के संरक्षक अरुण कुमार पांडेय समेत भारी संख्या में साहित्य-संस्कृति प्रेमी उपस्थित थे।