मुंबई: प्रख्यात आलोचक और मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक डाॅ.करुणाशंकर उपाध्याय को रविवार 31अक्टूबर 2021 को सिंहभूमि जिला साहित्य सम्मेलन, जमशेदपुर द्वारा स्वदेश स्मृति सम्मान-2021 प्रदान किया जाएगा। इसके अंतर्गत रुपए 51,000/- की सम्मान राशि, प्रशस्ति पत्र,अंगवस्त्र, स्मृति- चिह्न और श्रीफल प्रदान किया जाएगा। डाॅ.उपाध्याय को यह सम्मान उत्कृष्ट आलोचनात्मक लेखन के अलावा साहित्य, संस्कृति और भारतीय जीवन-मूल्यों के पुरस्करण में बहुमूल्य योगदान के लिए दिया जा रहा है। यह घोषणा संस्थाओं मानद महासचिव प्रसेनजित तिवारी ने की।
ध्यातव्य है कि डाॅ.करुणाशंकर उपाध्याय वर्तमान दौर के अतिशय चर्चित और बहुपठित आलोचक हैं, जिनकी पुस्तकों के अनेक संस्करण निकलते हैं। इनकी अब तक बीस मौलिक आलोचना पुस्तकें तथा बारह संपादित पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। साथ ही, विविध पत्र-पत्रिकाओं में 380 से अधिक शोध लेख भी छप चुके हैं। इसके साथ ही इनके मार्ग दर्शन में 32 शोधार्थी पीएच-डी और 52 एम.फिल.उपाधि प्राप्त कर चुके हैं। डाॅ.उपाध्याय ने मुंबई विश्वविद्यालय के दो बार विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए भी विश्वस्तरीय आयोजन एवं उल्लेखनीय कार्य किए हैं। इन्हें अब तक राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दो दर्जन से अधिक सम्मानों से भी नवाजा जा चुका है। वे भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, विश्व विद्यालय अनुदान आयोग और अनेक विश्वविद्यालयों की विभिन्न समितियों के सदस्य भी हैं। वे भारतीय एवं पाश्चात्य साहित्य, संस्कृति, कलारूपों के अलावा ज्ञान-विज्ञान के विविध क्षेत्रों में भी गति रखते हैं। उनकी आलोचना दृष्टि भारतीय अस्मिताबोध और विश्व बोध से परिचालित है जो साहित्यिक क्षेत्र में व्याप्त हर प्रकार की जड़ता और संकीर्णता पर प्रखर आक्रमण करती है।
इनके आलोचनात्मक व्यक्तित्व पर विमर्श करते हुए प्रख्यात लेखिका चित्रामुद्गल ने इसी वर्ष जनवरी में डाॅ.उपाध्याय को आज के सबसे बड़े आलोचक की संज्ञा देते हुए समकालीन आलोचकों का प्रतिमान कहा था। इसी तरह वरिष्ठ प्राध्यापक एवं आलोचक डाॅ.आनंदप्रकाश त्रिपाठी ने करुणाशंकर उपाध्याय में निहित संभावनाओं का निदर्शन करते हुए उन्हें 21 वीं सदी का आचार्य रामचंद्र शुक्ल कहा है तो युवा आलोचक और प्राध्यापक डाॅ.अरविंद कुमार द्विवेदी ने इन्हें अज्ञेय के बाद हिंदी का सबसे बड़ा अंतर-अनुशासनिक विद्वान आलोचक कहा है। द्विवेदी का स्पष्ट अभिमत है कि जिस तरह बीसवीं सदी की हिंदी आलोचना के मानदंडों को आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने निर्धारित किया और समग्र हिंदी आलोचना आचार्य शुक्ल की परिक्रमा करती हुई उनके प्रतिमानों का द्वंद्वात्मक विकास करती दिखाई देती है। उसी भांति निश्चित ही 21वीं सदी की हिंदी आलोचना के प्रतिमान प्रोफेसर करुणाशंकर उपाध्याय हैं जो अपने विराट अध्ययन, अंतर्दृष्टि, विश्व-संदृष्टि, नित्यनवीन और अद्यतन विचारों के कारण वे कई अर्थों में समकालीन और 21वीं सदी के आलोचकों में श्रेष्ठ ही नहीं मैं कहूंगा कि सर्वश्रेष्ठ आलोचक बनने की ओर अग्रसर हैं। इस दृष्टि से चित्रामुद्गल का कथन एक बडी संभावना की ओर ध्यान आकृष्ट करता है। उनकी आलोच्य चेतना और दृष्टि भारतीय मूल्यों, विचारों, परंपराओं का अवगाहन करती हुई आधुनिकतावाद और उत्तरआधुनिकता वाद के साथ-साथ, वैश्वीकरण से उद्भूत बाजारवादी , उपभोक्तावादी स्थितियों से उत्पन्न जटिलता का भी संपूर्णता में मूल्यांकन करती है। हिंदी साहित्य, इतिहास, दर्शन, आदर्श-यथार्थ, समय-समाज, राजनीति आदि के साथ सैन्य-सामरिक व विदेश-मामलों में उनकी गहरी समझ उल्लेखनीय है। उन्होंने रक्षा विशेषज्ञ के रूप में भी अपार ख्याति अर्जित की है। संपूर्ण हिंदी साहित्य में अंतर-अनुशासनिक विषयों का इतना गहन और विशद अध्ययन और ज्ञान अज्ञेय के पश्चात करुणाशंकर उपाध्याय के अलावा किसी अन्य आलोचक-विचारक में दूर-दूर तक दिखाई नहीं पड़ता है। यह आपको सबसे अलग और विशिष्ट बनाता है। ऐसा माना जाता है कि जो रेगिस्तान में पैदा हो, कांटों में पले फिर भी अपना गुण-धर्म न छोड़े और सुगंध बिखेरे वही राजा है। गुलाब इसी कारण फूलों का राजा है। डॉ.उपाध्याय ऐसे ही गुणों के पुरस्कर्ता हैं। उनकी अनेक आलोचना पुस्तकें पूर्णता की ओर बढ़ रही हैं जो एक बड़ी संभावना का संकेत है।
पोस्ट डाॅक्टरल रिसर्च— यू.जी.सी.की अध्येता वृत्ति पर पाश्चात्य काव्यचिंतन के विविध आंदोलन (2001)।
प्रमुख प्रकाशित कृतियां :– सर्जना की परख(1995),आधुनिक हिंदी कविता में काव्यचिंतन (1999), मध्यकालीन काव्य: चिंतन और संवेदना (2002), पाश्चात्य काव्यचिंतन (2003),विविधा (2003), हिंदी कथासाहित्य का पुनर्पाठ (2008), आधुनिक कविता का पुनर्पाठ (2008), हिंदी का विश्व संदर्भ (2008),आवां विमर्श (2010),हिंदी साहित्य: मूल्यांकन और मूल्यांकन (2012), मिथक की समकालीनता (2013), ब्लैकहोल विमर्श ( 2014),सृजन के अनछुए संदर्भ (2015), साहित्य और संस्कृति के सरोकार (2016) , पाश्चात्यकाव्यचिंतन: आभिजात्यवाद से उत्तर आधुनिकतावाद तक,(2016), अप्रतिम भारत (2018),उद्भ्रांत का काव्य: बहु-आयामी विमर्श (2019),गोरखबानी (2020), चित्रामुद्गल संचयन (2020), मध्यकालीन कविता का पुनर्पाठ (2021), कथासाहित्य का पुनर्पाठ ( 2021) ।
संपादन: अब तक 12 पुस्तकों का संपादन।
सहलेखन:- मानव मूल्यपरक शब्दावली का विश्वकोश (2005), तुलनात्मक साहित्य का विश्वकोश (2005),
सम्मान/पुरस्कार:- महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी का बाबूराव विष्णु पराडकर पुरस्कार (2004-05), हिंदी सेवी सम्मान (2006), पं .दीनदयाल उपाध्याय आदर्श शिक्षक सम्मान (2008), विश्व हिंदी सेवा सम्मान(2009), आशीर्वाद राजभाषा सम्मान (2009,2012 और 2015),महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी का आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान (2012-13), मुंबईविश्वविद्यालय का सर्वश्रेष्ठ शिक्षकसम्मान(2013-14),,जीवंती फाउंडेशन का साहित्य गौरव सम्मान (2014-2015),भारती गौरव सम्मान (2015),व्यंग्य- यात्रा सम्मान (2015-16), मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति सम्मान (2018),विद्यापति कविकोकिल सम्मान (2018), साहित्य भूषण सम्मान (2018-19),महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी का पद्मश्री अनंत गोपाल शेवड़े सम्मान (2018-19),पुस्तक भारती संस्थान, कनाडा का प्रो. नीलू गुप्ता सम्मान (2019)।
संप्रति:- प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, हिंदी विभाग, मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई-400098/ अंतरराष्ट्रीय महासचिव हिंदी साहित्य भारती।