हूबनाथ पांडेय की पांच कविताएँ

हूबनाथ पांडेय
हूबनाथ पांडेय (कवि ) प्रोफ़ेसर - हिंदी विभाग, मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई
  1. तुम और हम

तुम जनमे
तब देश ग़ुलाम था
हम जनमे
आज़ाद देश में
तुम थे कमज़ोर
पर अपनी कमज़ोरी को
अपनी ताक़त बनाते रहे
हम अपनी ताक़त
बदलते रहे कमज़ोरी में
तुम होते गए निरंतर निर्भय
हम डर की खोल में
कछुए जैसे
तुमने सच को साथी माना
हमने संकुचित स्वार्थ को
तुम जोड़ रहे थे
हम तोड़ रहे हैं
अहिंसा तुम्हारा धर्म
हिंसा हमारी आदत
तुम क्षमा करते रहे
हम नफ़रत
तुम निश्छल थे
हम चंचल हैं
तुमने आंख मूंद कर
विश्वास किया हमारी
अच्छाइयों पर
और हमने सिर्फ़
इस्तेमाल किया
तुम्हारे सिद्धांतों को
तुम कण कण बढ़ते गए
हम तिल तिल घटते रहे
तुम हमें जिलाने के
सार्थक बनाने के
रास्ते तलाशते रहे
और हम तुम्हें मारने के
जड़ से उखाड़ने की
तरकीबें ढूंढ़ते रहे
तुम ख़ुशबू की तरह
पसरते रहे
सारी क़ायनात में
हम अपनी दुर्गंध में
होते रहे क़ैद
जबकि एक बार
तुमने ही हमें कराया आज़ाद
हमारी कमज़ोरियों से
आज तुम हो गए
डेढ़ सौ वर्ष के
और ज़िंदा हो
हम मर रहे हैं रोज़
तलाश रहे
ज़िंदगी के बहाने
और शर्मिंदा हैं
कि नहीं पहचान पाए तुम्हें
वक़्त रहते
वरना शायद बचा पाते
जीवन अपना भी
और अपनों का भी
अब तो सिर्फ
अफ़सोस रहेगा
कि तुम्हें तस्वीरों में
जड़ने की जगह
मन में जड़ते
पुस्तकों में पढ़ने की बजाय
जन में पढ़ते
तो कितना अच्छा होता
पर अब तो देर हो चुकी है।

हूबनाथ पांडेय

2. वसीयत

गांधी के मरने के बाद
चश्मा मिला
अंधी जनता को
घड़ी ले गए अंग्रेज़
धोती और सिद्धांत
जल गए चिता के साथ
गांधीजनों ने पाया
राजघाट
संस्थाओं ने आत्मकथा
और डंडा
नेताओं ने हथियाया
और हांक रहे हैं
देश को
गांधी से पूछे बिना
गांधी को बांट लिया हमने
अपनी अपनी तरह से

3. ख़ामोशी

मरने से ठीक पहले
वह चीखा भर होता
तो शायद बच सकता था
सिर्फ़ बचे रहने के लिए
वह उम्र भर ख़ामोश रहा

हूबनाथ पांडेय

4. विकास

पत्तल और दोने
पर्यावरण को
कर रहे थे बरबाद
इसलिए
चमचमाती
पीतल की थाली में
परोसे गए
मुफ़्त इंटरनेट डेटा
और सिम कार्ड
भूखे लोग
अब कर सकते हैं
गुणगान
पीतल की थाली का
बिना किसी व्यवधान

5. अर्थ

चुप रहने के
हज़ार फ़ायदे
चुप रहनेवाले से
कोई नहीं झगड़ता
किसी को कष्ट नहीं होता
चुप रहनेवाला
कभी दुखी नहीं होता
कभी शिकायत नहीं करता
आलोचना नहीं करता
चुप रहनेवाला
सबको अच्छा लगता है
सबको अच्छा लगने
निहायत ज़रूरी है
चुप रहना
दस हज़ार साल पहले
मनुष्य ने जब
बोलना सीखने की
शुरुआत की
तब उसे नहीं पता था
बोलने से कहीँ बेहतर है
चुप रहना
दस हज़ार साल बाद
ऋषियों की पावन भूमि पर
यह ज्ञान मिला
कि चुप रहनेवाला
सरकार गिराने के आरोप में
आधी रात को
गिरफ़्तार नहीं होता
डॉक्टर कहता है
जनम से बहरा व्यक्ति
जनम से गूंगा हो जाता है
गूंगा होने के लिए
बहरा होना अनिवार्य है
ज्ञानियों का मानना है
जीवन के किसी भी मोड़ पर
थोड़े से प्रयास से
बहरे हो जाओ
गूंगापन ख़ुद आ जाता है
बहरा होने का दूसरा फ़ायदा
कुछ हद तक
अंधापन आ जाता है
आप वही देख पाते हो
जो आंख के आगे है
और हर आंख की
एक सीमा तो होती ही है
और अगर बोलना हो जाए
बेहद ज़रूरी
और जेल भी न जाना हो
तो या तो वर्दी पैदा करो
या गर्दी पैदा करो
या कुर्सी पैदा करो
इनमें से कुछ भी पैदा न कर पाओ
तो बनकर शिखंडी
रक्षा करो
सत्ताधारी अर्जुन की
युद्धोपरांत
पद पुरस्कार प्रतिष्ठा
कुछ भी असंभव नहीं
अप्राप्य नहीं
अतः अनुभवियों की मानो
और चुप रहो
और बोलना ही पड़े
तो ऐसा बोलो
जिसका कोई अर्थ न हो
तकलीफ़ बोलने में नहीं
अर्थ से है
अर्थ चाहिए
तो अर्थ से बचो
चुप रहो
ख़ुश रहो!

हूबनाथ पांडेय


परिचय


हूबनाथ पांडेय
हूबनाथ पांडेय

कवि : हूबनाथ पांडेय

सम्प्रति: प्रोफ़ेसर, हिंदी विभाग, मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई
संपर्क: 9969016973
ई-मेल: hubnath@gmail.com

संवाद लेखन:

  • बाजा (बालचित्र समिति, भारत)
  • हमारी बेटी (सुरेश प्रोडक्शन)
  • अंतर्ध्वनि (ए.के. बौर प्रोडक्शन)

प्रकाशित रचनाएं:

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  • सिनेमा समाज साहित्य
  • कथा पटकथा संवाद
  • समांतर सिनेमा

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