मारेसि मोंहि कुठांव (कहानी) – हुबनाथ पांडेय

कुएं की पक्की जगत से कांसे का लोटा भरे गीली धोती निचोड़ते भारी देह के पुजारी बाबू जैसे ही पहली सीढ़ी पर उतरे की धोती अंगूठे में फंसी और धड़ाम से पांच सीढ़ी नीचे। पल भर में पूरा गांव पुजारी बाबू की मसहरी के इर्द-गिर्द जुट गया।

दुआर पर जुटे गांव को देख पुजारी बाबू हाथ जोड़- जोड़ कराहते कह रहे थे कि अब नहीं बचूंगा। कहा-सुना माफ़ करें। पचहत्तर बरस के पुजारी जी सत्रह साल पहले कचहरी के हेड मुंशी पद से रिटायर हुए थे, पर गांव छोड़ शहर में बसने का कभी सपने में भी नहीं सोचा। बड़ा बेटा गांव के पास ही के इंटर कालेज में प्रोफेसर है। छोटा बेटा यूनियन बैंक में क्लर्क लगा है। बेटियां बड़ी धूमधाम से पंडितों के ऊंचे खानदान में ब्याही गईं। पुजारी बाबू ही घर के मालिक थे। बीस बीघे उपजाऊ खेती कम नहीं होती। ऊपर से बेटों की तनख्वाह भी पुजारी जी की ही तिजोरी में जमा होती। शहर की तर्ज पर बढ़िया तिमंजिला मकान लैट्रिन, बाथरूम, जनरेटर, सौर ऊर्जा से टंच। कोई कमी नहीं। पर बहुओं को तो शहर का आकर्षण।

पुजारी बाबू के सामने किसी की नहीं चलती। आसपास के दस-बीस कोस में पुजारी बाबू की तूती बोलती। लेकिन वाह री किस्मत! दयनीय हालत में रिरियाते बिनती किए जा रहे थे और एक ही रट कि अब नहीं बचेंगे। बेटों को खबर कर दिया गया, वे मोटर लेकर आ रहे थे। बनारस ले जाएंगे। दाहिनी जांघ की हड्डी टूट चुकी थी और छोटा-मोटा घाव और भी था। हड्डी के सबसे बड़े डाक्टर भटनागर का पालीक्लीनिक भोजूबीर चौराहे पर है। गांव के पुरनियां अपने असीमित ज्ञान का संक्षिप्त संस्करण प्रस्तुत कर ही रहे थे कि बेचन गुरू ने पूछ ही लिया कि मान लो पुजारी जी बनरसै में मर जायं, तो उन्हें यहां फिर से लाया जाएगा कि वहीं फूकताप दिया जाएगा। सवाल तो जेनुइन था, पर लहज़ा दुरुस्त नहीं था। बेचन गुरू गांव के सबसे उजड्ड सज्जनों में एक। इनके बारे में फिर कभी। राम उजागिर चाचा संयत होकर बोले कि मरें पुजारी बाबू के दुश्मन! मामूली हड्डी ही तो टूटी है, जुड़ जाएगी। फिर हड्डी जुड़ने पर सबने अपनी अपनी राय देनी शुरू कर दी। पुजारिन चाची पिछले ही साल सिधारी थीं, सो बड़ी बहू ही मलकिन थीं। वे चाहती थी कि जब पुजारी बाबू जा ही रहे हैं, तो तिजोरी की ताली तो देते जाएं। पर यह चर्चा बखरी के भीतर ही रही। बेचन गुरू जो अब भी उत्तर की प्रतीक्षा में थे, खुलासा करते हुए बोले कि अगर वहीं से मनिकनिका ले जाना पड़े, तो एक तोड़ औरतों को रो लेने दिया जाय, नहीं तो इनकी आतमा कलपेगी और पुजारी बाबू को भी सांती नहीं मिलेगी।

इतना सुनते ही पुजारी बाबू फूट-फूटकर रो पड़े। उनका रोना था कि बेचन गुरू ने जनाने में इसारा कर दिया और गांव भर की औरतें अलापते अरदास करते राग कढ़ाकर रो पड़ीं। इतने में मोटर आ गई। लाद फान कर पुजारी बाबू इनोवा की पिछली सीट पर लिटाए गए। बड़ा पोता सहारे के लिए करीब बैठ गया और बाबा बिस्वनाथ की जै बोलकर गाड़ी बनारस गई।

मेजर आपरेशन के बाद लगभग तीन महीने पुजारी बाबू अस्पताल में रहे और लाखों का बिल हुआ। जब वाकर के सहारे चलने लायक भए, तो डाक्टर भटनागर ने यह कहकर बिदा किया कि अब पुजारी बाबू बिना सेंचूरी मारे इस दुनिया से नहियअ जाएंगे।

घर के पजेरो से जब पुजारी बाबू बनारस से अपने दुआरे उतरे, तब तक गंगा में बहुत पानी बह चुका था। बैंक वाले बेटे ने कबीर चौरा के पास जीटी रोड पर एक छोटा सा बंगला खरीद लिया और शहर शिफ्ट हो गया था और अपने हिस्से के बदले में प्रोफेसर भाई से पचीस लाख लेकर सेकेंड हैंड पजेरो और सेकेंड हैंड बंगला खरीद लिया था। बाकी प्रापर्टी पर प्रोफेसर साहब का कब्जा। उन्होंने भी कचहरी के पास एक थ्री बीएचके फ्लैट अंडर कंस्ट्रक्शन में बुक कर लिया है। फुल पेमेंट अडवांस देने पर कंसेशन भी भारी मिला था। तिजोरी की ताली मस्टराइन की करधनी में। अठारह बीघे पुजारी जी के इलाज के बहाने लल्लन साव के खाते में चले ही गए। धनिया मरचा और सब्जी बोने भर को खेती तो है ही। जब सब साव की दुकान पर उपलब्ध है तब किसानी में कौन मरे और मजूर भी कहां मिलते हैं? ससुरा मनरेगा ने इनका माथा फिरा दिया है।
बहनों को कुछ भी नहीं मिला क्योंकि स्त्रीधन तो दहेज में अदा हो ही चुका था और तीज त्यौहार कुछ न कुछ ले ही जाती हैं।

प्रशस्त दलान में अपनी मसहरी पर चाय पीकर लेटते ही इन तीन महीनों की रपट जब पुजारी जी को मिली, तब उन्होंने एक गहरी सांस लेकर बस इतना कहा कि महादेव! बुढ़ापे में किसी की हड्डी इस तरह न टूटे! और धीरे से करवट लेकर आंखें मूंद लीं।

1 COMMENT

इस पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रिया दें