Tuesday, April 30, 2024
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अनभै
अनभै का अंक सहधर्मी और सहचर की भूमिका में आपके हाथ में है। 'अनभै' की आवश्यकता क्यों? हिंदी में जब इतनी लघु और दीर्घ पत्रिकाएं, भांति-भांति की पत्रिकाएं, रंग-बिरंगी एवं रंगहीन, नियतकालिक और अनियतकालीन निकल रही हों, एलोेकट्रोनिक 'मिडिया' इतना प्रभावी और हावी हो चूका हो कि पठनीयता के समक्ष प्रश्नचिह्न लगाये जा रहे हों, बाजारू-पण्य व्यवस्था की पकड़...
समीक्षा
अपने एक उपन्यास में आलोचना के दृष्टिकोणों को विशद करते हुए गजानन माधव मुक्तिबोध ने एक ऐसे अंतर्ग्रन्थित समीक्षा की जरुरत बताई है जो रचना के ऐतिहासिक-समाजशास्त्रीय, सौंदर्यात्मक-मनोवैज्ञानिक सभी पक्षों को एक साथ उद्घाटित करते हुए रचना के समूचे मर्म को हमारे सामने उद्घाटित कर सके। कोई भी रचना यदि वस्तुतः वह जेनुअन रचना है, अपनी जड़ें जिंदगी के...
ईद-उल-फ़ित्र
इस्लाम धर्मावलंबी रमज़ान उल-मुबारक के महीने के बाद एक मज़हबी ख़ुशी का त्यौहार मनाते हैं जिसे ईद उल-फ़ित्र कहा जाता है। ये यक्म शवाल अलमकरम को मनाया जाता है। ईद उल-फ़ित्र शव्वल इस्लामी कैलंडर के दसवें महीने के पहले दिन मनाया जाता है। इस्लामी कैलंडर के सभी महीनों की तरह यह भी नए चाँद के दिखने पर शुरू होता है।...
रोटी
आधी सूखी रोटी पे था नमक भी कम पड़ रहा माँ ने पूछा लाल से कौन है ये रच रहा? पेट की न आग बुझी प्यास भी अब जल गयी होती क्षुधा शांत मेरी ख्वाब बनकर रह गयी. देखा था कल फ़ेंक रहा था, छत की मुंडेर से जूठन कोई, सोच रहा था मैं, मुझे दे देता वाही जूठन कोई. आगे बढ़ा जब हारकर तो कुतिया भी चट कर गयी होती क्षुधा शांत...

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